ताज़ on October 15, 2025 Get link Facebook X Pinterest Email Other Apps तक़ाज़ा शफ़्फ़ाक़ का नूर-ए-ताज़ से इक जरिया बज़्म-ए-शाही ज़माल से उसको देखूँ तो लिखने लगता हूँ ग़ज़ल जैसे निकला हो चाँद अभी घटाओं से वो देखे ज़ब यूँ पर्दा-ए-नशीँ से कँवल कैसे बचें हम अब उसकी इन अदाओं से रहबर  Comments
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