इश्क़ - ए - मंज़र 3

इश्क़ हो, मोहब्बत या फिर हो ये याराना
आ मेरे पास थोड़ी बाते हो या हो तराना

एक शख्श से मिलना अच्छा है सेहत में 
क्या फ़र्क़ पड़ता है, क्या कहता है जमाना

बेशक महताब नहीं आफ़ताब के बगैर अब 
हर पन्ने पे छोड़ रही स्याही एक अफसाना

मैं तो नहीं काबिल सो खुदा की इबादत करू 
क्या होगा हर्श उनका जिनका खुदा होगा परवाना

महबूब के दीवानो में एक नाम और है रहबर 
हमशक्ल भी क्या करे है वो अब बेचारा दीवाना

गौतम रहबर 

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