मुस्कान
इन आँखों को किस कदर तुम पहचानते हो
कुछ नहीं हैं आँखों में, इतना सब जानते हो
आखिर तुम जीत गए इमरोज़ क़यामत में
फिर एक अजनबी की मुस्कान पहचानते हो
ये दौर अलग है, हर शख्स की बात अलग है
रंगा के मुझे रंग में, हर इख़्तियार को जानते हो
कर दूँ बयां गर मैं तुम्हारी मुस्कुराहट को यूँ ही
हम्म, यूँ ही नहीं तुम हमारी नजरों को चुराते हो
ना जाने कैसे मिल गए तुम हमें, कहता हैं 'रहबर '
अब इन्ही आँखों से तुम जज़्बातों को छुपाते हो
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