किस हक़ से आकर तुझ से मिलूंगा अब
किस हक़ उसकी से गली में फिरूंगा अब
मेरे मनसूबे की दिवाल पर तस्वीर थी उसकी
काँपते लबों से, अश्क़ो से कैसे हटाऊँगा अब
ये पहाड़ की चोटी है, मेरा रस्ता, तुझसे पाने का
देख लिया नीचे गलती से गर , ठेट गिरूंगा अब
गर पा लिया मैंने तेरे होने का साथ, जो था कभी
ख़्वाब भरी दुनियां, उठ कर पानी पी-लुंगा अब
ये ख्वाब की बातें अगर रह गयी ख्वाबों में मेरे
वो दिन भी दूर नहीं, दोस्तों से नहीं मिलूंगा अब
जा मैंने तुझे आजाद किया, मोहबत से रिहा किया
होगी गर बा-वफ़ा तुझमें, किनारे पैसे गिनुगा अब
रहबर
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