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हर सलीके से जीस्त को जिए जाना है 
उसे अंजुमन में आ कर भी लौट जाना है
कुदरत का करिश्मा देखो कैसी करवट है
हर एक शख्श को फिर आजमाया जाना है
सुबह हुई फिर वही पुराने बिखरे कागज
शाम होते होते फिर वही उसी घर को जाना है
कुछ न रहा जिंदगी में शौक के अलावा
जिधर देखो हर शख्स हमें गमगीन किये जाना है
हम कितना भी उड़ ले इस आसमां में
फिर एक दिन उसी जमीं पे परचम लहराये जाना है
तुम कहो क्या इबादत करते हो ख़ुदा से
हर जर्रे में हर महफिल में तेरा नाम लिए जाना है
हाँ हम हो गये पागल, तुझसे ये कैसा राब्ता है
उसी शख़्स से हमें फिर हारते हुए जाना है 
गर मैं ख़ुश हुआ इन छोटे मुकामों से "रहबर"
तो फिर क्यूँ उस मुकाम का नक्शा लिए जाना है
गौतम रहबर 

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