जब इश्क़ हो हमसे दग़ा करना
बेपनाह हमसे यूँ ना वफ़ा करना
हम नहीं काबिल तेरी मोहब्बत के
हक़ जता कर यूँ ना सफा करना
हमसे ना हो पायेगा ये दोहरा इश्क़
मंजर के साये में हँस के जफ़ा करना
मेरी शरारतें पसंद करती हो तुम
वफ़ा इल्म के दरमियाँ अदा करना
हाँ इश्क़ की जगह तुम मुझसे दग़ा करना
तेरे मुस्कुराने भर से जां निसार करना
Comments
Post a Comment