बहुत दिन हो गए है हमें तुम्हें लिखे हुए
फिर ना जाने कब उठाएंगे पत्ते गिरे हुए
मैं तुझ पर कुछ ना कुछ लिखूं बस लिखूं
उठा लूँ लफ़्ज़ अपने जो है कबके गिरे हुए
मैं जब भी देखूँ तो बस तुम्हें ही देखूँ हाँ
देखूँ तुम्हें जैसे हाला के प्याले में गिरे हुए
हो जाऊँ फ़ना मैं तेरे जुल्फों के साये में
जागूं तो उठा लूँ जो है नजरों में गिरे हुए
ये तेरा मेरे पास होने का अच्छा तराना है जैसे
तकाजे का मारा शख्स उठाता है सिक्के गिरे हुए
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